Just Emkaying: April 2018

Apr 29, 2018

ये कैसी मुश्किल आई है

ये कैसी मुश्किल  आई है
चैन से रो भी नहीं सकता
कैसे नींद आयेगी मुझे
यादें तुम्हारे रोक नहीं पाता

दील टूटा नहीं
संभल के रखा है
यह मेरी लिए नहीं
तेरे लिए धडकता है

ये कैसी मुश्किल आई है
ग़म मनाने का वक़्त नहीं
मेरी उदासी कहीं तुझे न लग जाये
इस ख्याल में हस्ता रेहता हूँ

माफ़ कर दे, गलती हम से हो गयी
क्या करें, पता ही नहीं चला
और जब पता चल गया
थो दिल चुप न रेह सखा

ये कैसी मुश्किल आई है
तेरी आहट से दिन बनती है
और तेरी परछाई से श्याम
जब थू ही नहीं, थो क्या दिन, और क्या श्याम

जानता हूँ की दिन दूर नहीं
की मेरी नज़र से नफरत हो जाएगी तुम्हे
एक नज़र से शुरू
और उसी से कथम

ये कैसी मुश्किल आई है
बीच बातों में तेरा नाम लेता हूँ
जी थो लूँगा तुम्हरे बिना
पर तेरे रुह से बंधा हूँ

ये कैसी मुश्किल आई है



(I had penned this down in 2014. It remained in my drafts for a long time, and make no mistake, I am no poet nor is my Hindi any good. But then again, it held meaning. I was rummaging through the drafts, and I thought - Why not? Grammar & Spelling corrections welcome :)