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Aug 25, 2008

Beautiful poem

शर्म कहाँ से होगी

कपड़े हो गए छोटे, शर्म कहाँ से होगी
अनाज हो गए हाय ब्रीद, स्वाद कहाँ से होगा
नेता हो गए कुर्सी के. देश भावना कहाँ से होगी
फूल हो गए प्लास्टिक के, कुश्बू कहाँ से होगी
चेहरे हो गए मके उप के, रूप कहाँ से होगा

खाना हो गया दालदा का, थाक्थ कहाँ से होगी
प्रोग्राम हो गए केबल के, संस्कार कहाँ से होगी
आदमी हो गए पैसे के, दया कहाँ से होगी
भक्त हो गए स्वार्थ के, ईश्वर कहाँ से होगा
व्यापार हो गए हेरा फेरी का, मुनाफा कहाँ से होगा,
व्यवहार हो गए टेलीफोन का, शर्म कहाँ से होगी.



(This beautiful poem was written by Shri Kapur Patel from Rajasthan. I read it ina local Marwadi magazine and had written it down. I do not remember the name of the magazine or the date. It has been reproduced here in original form without any changes)

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